हरियाणा के सिरसा विधानसभा सीट पर बड़ा बदलाव : बीजेपी उम्मीदवार का नामांकन वापस

हरियाणा के सिरसा विधानसभा सीट पर बड़ा बदलाव : बीजेपी उम्मीदवार का नामांकन वापस

भाजपा ने सिरसा सीट पर रोहताश जांगड़ा का नामांकन वापिस लिया

हरियाणा के सिरसा विधानसभा क्षेत्र से एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम सामने आया है। भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) ने अचानक निर्णय लेते हुए अपने उम्मीदवार रोहताश जांगड़ा का नामांकन वापस ले लिया है। यह निर्णय भाजपा की एक गुप्त बैठक के बाद लिया गया, जिसमें पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने भविष्य की रणनीति पर चर्चा की।

 

हलोपा को मिला भाजपा का समर्थन

भाजपा ने सिरसा सीट पर अपने उम्मीदवार का नामांकन वापिस लेने के साथ ही हलोपा के उम्मीदवार गोपाल कांडा को समर्थन देने का ऐलान किया है। हलोपा (हल्लोपा) पहले से ही इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का समर्थन प्राप्त कर चुका है। भाजपा के इस कदम ने हरियाणा की राजनीतिक स्थिति को और अधिक पेचिदा बना दिया है, जहां हलोपा और उसके सहयोगी दलों की स्थिति को अब और मजबूती मिली है।

 

रोहताश जांगड़ा का बयान

रोहताश जांगड़ा ने नामांकन वापस लेने के बाद एक बयान में कहा कि यह निर्णय संगठन के आदेश पर लिया गया है। उन्होंने पार्टी की एकता और समर्पण की बात की और कहा कि भाजपा का उद्देश्य कांग्रेस पार्टी को हराना है। जांगड़ा ने आश्वस्त किया कि पार्टी के निर्देशों का पालन करना उनका कर्तव्य है और वे मिलकर आगामी चुनाव में कांग्रेस को हराने का प्रयास करेंगे।

 

गोपाल कांडा का समर्थन और परिवार का राजनीतिक इतिहास

उधर, गोपाल कांडा ने एक दिन पहले मीडिया से बातचीत में यह स्पष्ट किया कि वह अब भी NDA (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) का हिस्सा हैं। कांडा ने कहा कि यदि वे चुनाव जीतते हैं तो भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे। कांडा का परिवार राजनीति में एक लंबा इतिहास रखता है। उनके पिता मुरलीधर कांडा ने 1952 में जनसंघ के टिकट पर डबवाली सीट से चुनाव लड़ा था, और उनकी माता आज भी भाजपा को वोट देती हैं। कांडा ने यह भी बताया कि उनका परिवार शुरू से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ा हुआ है।

 

भाजपा की नई रणनीति और राजनीतिक समीकरण

भाजपा का यह कदम सिरसा सीट पर राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह से बदल सकता है। भाजपा ने अपने पुराने उम्मीदवार को हटाकर हलोपा को समर्थन देने का फैसला किया है, जो कि इस चुनावी सीज़न में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यह फैसला भाजपा की भविष्य की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसमें पार्टी ने अपनी ताकतवर स्थिति को बनाए रखने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों और समीकरणों के साथ तालमेल बिठाने का प्रयास किया है।

 

इस घटनाक्रम ने हरियाणा की राजनीति में हलचल मचा दी है और आगामी विधानसभा चुनावों में नयी चुनौतियों और अवसरों को जन्म दिया है। अब देखना होगा कि यह बदलती हुई राजनीतिक परिस्थिति किस दिशा में जाती है और भाजपा, हलोपा और अन्य दलों की रणनीति चुनावी नतीजों पर क्या असर डालती है।

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